सोमवार, 1 मई 2017

पहले तो ऐसा न था कभी..

पहले तो ऐसा न था
के तुझे देखने की तड़प
तुझे सुनने का एहसास
तुझे छूने की चाह
और तेरा होने की प्यास..
कहाँ था ऐसा कुछ भी
जो भी था
वो
वो जैसे कुछ धुंधला धुंधला सा
याद आता है
पर
जो अब है
वो पहले तो न था
हम
मिलते नहीं थे
अब
साथ रहते हैं
एक दूजे के दिल में
जैसे
अनजान थे पहले
पर अब
बहुत कुछ जान गए हैं
फिर भी जाने क्यों
दिल ये मेरा
तेरे लिए अनजान ही बना रहना चाहता है
ताकि
तुझे और जान सकूँ
पर..
पहले तो ऐसा न था
जो अब है।
ये रिश्ता
एक नए मोड़ पर है
क्या तुझे एहसास है
या
ये बस मेरी प्यास है??
जो भी है
एक धीमी तड़प है
फिर भी सुखद है
जैसे
गुलाब के फूल संग काँटे।
दिल करता है
कभी कभी
तुझे मोबाइल फोन पे ही
अपनी छुअन का एहसास दिलाऊँ
और उसी एहसास में
मैं भी
गुम हो जाऊं
कहीं
खो जाऊँ।
बस
तेरा हो जाऊं..
क्या तुमने सोचा कभी
माही!
पहले तो ऐसा न था कभी..
है न??

महेश_माही
1 मई 2017
10:29 pm

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