शुक्रवार, 13 नवंबर 2015

जाने क्यों..?

जब मैं तुमसे मिली थी
तब कुछ खास नहीं लगे तुम
पर शायद
कोई तो बात थी तुममे
जिस कारण
मैने तुमसे
दोस्ती करना चाही।
हममे
धीरे धीरे
बात
बातों की शुरुआत हुई।
फिर इन्हीं
बातों बातों में
मैं तुम्हे जानने लगी।
तुम इतना सच बोलते थे
कि अक्सर डर लगता था मुझे
कि अगर
हमारा रिश्ता आगे बढ़ता है तो
हम कैसे एक रह पाएंगे
बस इसी डर से
मैंने तुमको ठुकरा दिया था।
पर
जाने तुझमे क्या बात थी
जो तुम मुझे
अपने पास
वापस ले आये।
मैं फिर आई
तुम्हारी ज़िन्दगी में।
बस तुमको सुनने के लिये
मैं तुमसे बात करने लगी
बस तुमको देखने के लिए
तुम्हारी फोटो तुमसे मांगने लगी।
सब जानती थी मैं
तुम्हारे बारे में
कि तुम इश्क़ के काबिल नहीं
फिर भी
अब मैं तुमसे प्यार
करने लगी।
पर रहना था मुझे
प्यार से दूर
बस इसीलिए मैं
इन्कार करने लगी।
और फिर वही हुआ
जब तुमने सच में
इन धड़कनों को छुआ।
पर तुमने धोखा दिया
मुझे अपना के मुझसे दगा किया।
और चले गए दूर मुझसे
जाने क्यों हुए इतने मजबूर खुद से।
मैंने भी तब
तुमसे दूर जाने का
फैसला किया
पर दिल है कि मानता नहीं
ये आज भी
तुझे सुनने की ज़िद करता है
चोरी छुपे हर रोज
ये बस तुझको ही पढ़ता है।
सोचती हूँ
कि अब तो तुम बहुत दूर हो माही!
पर फिर भी
ये दिल मेरा
बस तुम्हारे लिए ही आज भी
जाने क्यों धड़कता है।
पता नहीं..
आखिर क्यों??

#महेश_बारमाटे_माही

3 टिप्‍पणियां:

  1. जय मां हाटेशवरी....
    आप ने लिखा...
    कुठ लोगों ने ही पढ़ा...
    हमारा प्रयास है कि इसे सभी पढ़े...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना....
    दिनांक 15/11/2015 को रचना के महत्वपूर्ण अंश के साथ....
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की जा रही है...
    इस हलचल में आप भी सादर आमंत्रित हैं...
    टिप्पणियों के माध्यम से आप के सुझावों का स्वागत है....
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    कुलदीप ठाकुर...


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  2. जिंदगी दर्द है वफ़ा नहीं ज़फा सही.... तूम से हो कर तूम तक पहुँच जाए वो सहर नहीं......... खुबसूरत आपकी कविता कुछ ऐसा ही कहती है

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