यादों के झरोखों से
एक याद अब भी याद आती है
वो बचपन की अठखेलियाँ
दोस्तों के साथ की सैकड़ों मस्तियाँ
मुझे अब भी याद आती है।
कोई लौटा नहीं सकता
अब वो सुनहरे पल मुझे
के ज़िन्दगी की भाग दौड़
मुझे अब भी नहीं भाती है।
वो कहते थे कि बड़े हो जाओ
फिर जी लो ज़िन्दगी अपने हिसाब से
पर इस हिसाब किताब में अब
ज़िन्दगी जाने कहाँ खो जाती है।
आज न कोई रोक टोक
न नियम कानून
और न किसी सीमा का उलंघन है।
देख लिए सारे रिश्ते नाते
फिर भी सबसे प्यारा
ये दोस्ती का बंधन है।
ऐ दोस्त!
चल फिर जीते हैं कुछ पल ज़िन्दगी के
कि यादों के झरोखों से
ज़िन्दगी अब भी याद आती है।
#महेश_बारमाटे_माही
16 सितम्बर 15
9:59 am
एक याद अब भी याद आती है
वो बचपन की अठखेलियाँ
दोस्तों के साथ की सैकड़ों मस्तियाँ
मुझे अब भी याद आती है।
कोई लौटा नहीं सकता
अब वो सुनहरे पल मुझे
के ज़िन्दगी की भाग दौड़
मुझे अब भी नहीं भाती है।
वो कहते थे कि बड़े हो जाओ
फिर जी लो ज़िन्दगी अपने हिसाब से
पर इस हिसाब किताब में अब
ज़िन्दगी जाने कहाँ खो जाती है।
आज न कोई रोक टोक
न नियम कानून
और न किसी सीमा का उलंघन है।
देख लिए सारे रिश्ते नाते
फिर भी सबसे प्यारा
ये दोस्ती का बंधन है।
ऐ दोस्त!
चल फिर जीते हैं कुछ पल ज़िन्दगी के
कि यादों के झरोखों से
ज़िन्दगी अब भी याद आती है।
#महेश_बारमाटे_माही
16 सितम्बर 15
9:59 am
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, पागलों की पहचान - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंयादें जो मन में घर कर गयी कभी नहीं जाती
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
धन्यवाद कविता जी :)
हटाएंसारा माखन (जीवन का ) ले कर बचपन उड़ गया .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ....
जवाब देंहटाएंबचपन की यादें बहुत मासूम होती हैं । इसलिए उनका रूप नहीं बदलता जिन्दगी भर । बहुत अच्छा लिखते हैं आप मेरी ब्लॉग परआप का स्वागत है ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक रचना , मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....
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