रविवार, 5 अक्टूबर 2014

आज जरा जी लेने दे मुझे...


आ भर लूँ बांहों में तुझे
कि आज जी लेने दे मुझे।

ये तरसती निगाहें
और खुली मेरी बाहें
तू इन धड़कनों की प्यास है
क्या कहती हैं धड़कने तेरी
आज सुनने दे मुझे।

मेरी प्यास है तू
एक अन्जाना एहसास है तू
लिखा है नाम मेरा
हाथों की लकीरों में तेरी
एक बार फिर पढ़ने दे मुझे।

ये लबों की सुर्खी मेरी
बस तेरे नाम से है माही!
है इश्क़ तुझसे
कि आज लबों को लबों से
छू लेने दे मुझे।

आज जरा जी लेने दे मुझे...।

-महेश बारमाटे "माही"

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