शनिवार, 13 सितंबर 2014

कब ?

कब रोका था मैंने तुझे माही!
मेरी ज़िंदगी में आने से
और दिल तोड़ कर फिर जाने से...

मुझे अपना बनाने से
मुझे पलकों में छुपाने से
मेरी दुनिया में आ के
कुछ देर रुक के
मुझे यूं ही सताने से

सता के
मुहब्बत में
फिर रूठ जाने से
रूठ के बस यूं ही मुझसे
फिर दूर जाने से
कब रोका था मैंने तुझे
ज़िंदगी को मेरी
छीन कर ले जाने से
और मौत को भी
मुझसे दूर ले जाने से

दूर ले जा के
तन्हाइयों को भी
मुझसे खफा करवाने से
न चाहते हुये भी
एक बार फिर
मुझसे कोई खता करवाने से

कब रोका था मैंने तुझे माही!
मेरी ज़िंदगी में आने से
और दिल तोड़ कर फिर जाने से...

- महेश बारमाटे "माही"

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