शुक्रवार, 12 सितंबर 2014

कभी कभी तू यूं ही...

कभी कभी तू यूं ही दिख जाता है
तस्वीरों में मुझको
पर ऐ खुदा!
क्यूँ नहीं मिलता वो
मेरी तक़दीरों में मुझको।

कोई तो खता की होगी
गए जनम में हमने
के हर पल पाता हूँ
जंजीरों में खुद को।

प्यार देने आया हूँ
प्यार ही देना चाहता हूँ
पर जाने हो गई है
आज नफरत क्यूँ तुझको।

चल जी लें एक बार फिर
बन के अजनबी माही!
के वो मिलाता है हर बार ही
अजनबियों से मुझको।

- महेश बारमाटे “माही”

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