पर किसके लिए ?
ज़िंदगी भर के पाप आज
अश्कों की बारिश में धो लूँ
पर किसके लिए ?
मेरा दर्द – ओ – दवा बस तू है,
अब कुछ महसूस करूँ भी तो किसके लिए ?
तू जानता है मेरे हर मर्ज की दवा
आज मैं बीमार पड़ूँ भी तो किसके लिए ?
इश्क़ – ओ – ग़म आज दोनों हैं मुझे तुझसे
इज़हार करूँ भी तो किसके लिए ?
मेरा दिल, मेरी जां
सब तेरे नाम कर दिया है माही!
आज तुझे मैं प्यार करूँ भी तो
किसके लिए ???
- महेश बारमाटे "माही"
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