रविवार, 8 सितंबर 2013

मोहरा... (The Pawn of Politics)


साला !
मैं तो राजनीति का मोहरा हो गया...
किसी की आँख का कीचड़,
तो किसी के लिए सुविधाओं से भरा चेहरा हो गया...

मैंने तो चाही थी
दो वक़्त सुकून की रोटी,
पर मेरी हर हरकत पे
राजनेताओं का पहरा हो गया।

कोई मुझे अपनी किस्मत का तारा है कह रहा
तो किसी के लिए मेरी अनुपस्थिति इक ख्वाब सुनहरा हो गया।

राजनीति के दलदल में वो मुझे
बस अपने स्वार्थ के लिए खींच रहे हैं माही!
आखिर सरकारी नौकरी पा के मैं
क्यूँ खुद के लिए ही जहरीला हो गया...

                 - इंजी॰ महेश बारमाटे "माही"

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