बुधवार, 4 सितंबर 2013

अभिवंदना

दोस्तों !
शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य में सारे शिक्षकों की याद में एक नमन -

बचपन से लेकर आज तक
की है हमने सिर्फ जिसकी पूजा।
उस शिक्षक जैसा,
न मिला हमको कोई दूजा।

आज करते हैं हम सर्व प्रथम
उस "प्रथम शिक्षक" को नमन,
सच्चाई के रास्ते पर चलना सीखा हमने
पकड़ कर जी "माँ" का दामन।

हे ईश्वर !
क्षमा करना हमें
तुझसे बड़ा तो है वह शिक्षक महान,
जिसने दिया हमको
तेरी महिमा का ज्ञान।

इम्तिहान की अग्नि में तपाया
और दिया अन्दर से हमको सहारा।
हे शिक्षक !
हमारी नज़र में,
नहीं कोई पर्याय तुम्हारा।

क्या हुआ अगर कुछ लोगों ने,
बदनाम तुम्हारा नाम किया है.
हमने भी तो हर वक़्त,
ऊँचा तुम्हारा नाम किया है।

हे शिक्षक !
तुमको ही है हमने माना,
और तुमको ही है पूजा।
ईश्वर का अनमोल उपहार हो तुम
नहीं मिला हमको तुमसा कोई दूजा।

(नोट - यह कविता मैंने अपने कॉलेज के समय में केवल शिक्षक दिवस के लिए ही लिखी थी, और आज पुरानी यादों को याद करते वक़्त अचानक ये कविता मेरे सामने आ गई. और आपके सामने मैंने पेश कर दी। )

- महेश बारमाटे "माही"

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