मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

वो...


हर पल रंग बदलती ज़िंदगी को वो एक ही रंग में देखना चाहती थी...
नादान थी वो जाने कैसी...
के अपने हर पल में खुद को संग मेरे देखना चाहती थी...

वो जानती थी के ये पल कभी ठहरता नहीं,
और फिर भी
मुझे वक़्त के हाथों से मांगना चाहती थी...

एक ख्वाब उसने भी देखा था शायद,
वक़्त की दीवार में वो भी कुछ कुरेदना चाहती थी...

वो जो भी थी मुझे पुकारती थी कह के माही!
शायद अपना नाम मेरे नाम के संग जोड़ना चाहती थी...

- महेश बारमाटे "माही"
24 जनवरी 2013

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