गुरुवार, 17 जनवरी 2013

प्यास... तेरा माही हो जाने की...

हर रात
तुम होती हो, बस मेरे साथ...
मेरे ख्वाबों में,
ख्यालों में...
नींदों में,
और कुछ अनसुलझे सवालों में...

बन कर एक जवाब सा,
एक अनदेखा ख्वाब सा...
एक साया सा
कुछ कुछ मुझमें समाया सा...
होता है हर पल तेरा साथ... ।

तुम मेरे अन्तर्मन में हो,
मेरे दिल में, धड़कन में हो...
हो तुम बहुत करीब
और पास हो तुम...

फिर भी...
इतनी दूर हो,
के बस लगता है
एक एहसास हो तुम...

एक एहसास...
नहीं मामूली,
पर बहुत खास...
रेगिस्तान की बुझती आग सी,
तुम हो मेरी एक अनबुझी आग सी...

प्यास,
तुम्हें पाने की,
तुम्ही में खो जाने की...
और सारी दुनिया भुला के
बस तेरा माही हो जाने की...

इंजी० महेश बारमाटे "माही"
19 दिसंबर 2012

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