कुंठाओ से घिरा हुआ ये मन
आज पुकार रहा है तुम्हें
के तुम कहाँ हो
कहाँ हो तुम के ये दिल अब
बिन तुम्हारे न तो जी रहा है और न मर रहा है
बस तुम से मिलने की आखिरी आस में
आज तो ये अपनी आखिरी साँस में
तुम्हारा ही नाम बार बार
कभी दिल के इस पार तो कभी उस पार
बस यूं ही
शायद बेवजह
या शायद एक वजह से ही
तुम्हारा नाम
अपने नाम के साथ
हर जगह
लिख रहा है...
- इंजी॰ महेश बारमाटे "माही"
25/10/2012
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंधन्यवाद समीर जी :)
हटाएंबेहतरीन आत्म संवाद , बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अमरेन्द्र जी...
हटाएं
जवाब देंहटाएंदिनांक 23/12/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!