जब तुम होते हो साथ मेरे...
भूल जाता हूँ मैं सारा जहां,
हर शख्स, हर रिश्ता और हर दोस्त मेरा...
पर माफ कर देना तुम मुझे
के जब दोस्त हो कोई साथ मेरे
मैं तुझे कभी भूलता नहीं
पर उनका साथ आने देता नहीं
कभी तेरी याद
के दोस्ती और प्यार
होते हैं जैसे
इक़रार और एतबार...
दोस्त मुझे खुद से ज़ुदा होने नहीं देते
और तुझसे ज़ुदा मैं हो नहीं सकता
चाहे जहां रूठ जाए
पर ऐ सनम !
वो मुझे खोने नहीं देंगे
और तुझे मैं खो नहीं सकता...
वो ज़िंदगी हैं तो तू साँसें हैं मेरी,
तू मंज़िल है तो वो राहें हैं मेरी,
ये कोई दोराहा नहीं,
ज़िंदगी का सच है माही !
के तू नज़ारा और वो निगाहें हैं मेरी...
अब मत रूठ
तू मुझसे मेरे माही !
के मार डालेगी मुझे
संग उनके
तेरी ये झूटी रुसवाई...
और इल्ज़ाम लगेगा बस दोस्ती पे
इंजी० महेश बारमाटे “माही”
17 मार्च 2012
11:49 pm
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हर एक सच्चे दोस्त की हस्ती पे
ले चलने न दिया राहे – इश्क़ पे उसने मुझे
बस अपनी दो पल की मस्ती में...
very nce mahhiiii love it...
जवाब देंहटाएंthnx sis... :)
हटाएंsundr premmayi rachna
जवाब देंहटाएंprem bhari rachna
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....भावपूर्ण!!!
जवाब देंहटाएंwaah kya baat hai itni sunder rachna hogi to kaun rooth sakta hai
जवाब देंहटाएंखुबसूरत अभिवयक्ति........
जवाब देंहटाएंखुबसूरत अभिवयक्ति.....
जवाब देंहटाएंNice .
जवाब देंहटाएंNice .
जवाब देंहटाएंhttp://blogkikhabren.blogspot.in/
BAHUT SUNDAR ..PYARI ABHIVYKTI...
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंवाह..क्या खूब लिखा है आपने।
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी रचना !