बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

इल्तिज़ा... A Loving Request From Someone's Heart

इल्तिज़ा...
    A Loving Request From Someone's Heart...

फर्क पड़ता नहीं मुझको,
                 के आज जनाज़ा उसका उठ रहा है...
बात तो बस इतनी है, 
             के जो कल तक बस यूँ ही मुझसे रूठा था,
आज वो जिंदगी भर के लिए मुझसे रूठ रहा है...

खता बस हुई थी इतनी मुझसे,
         के मजबूरियों में छोड़ा था मैंने उसको,
पर आज देखो,
          हाथों से उसके, 
                           दामन मेरा छूट रहा है...

बस एक बार आजा, ओ साजन मेरे !
      के माँग लूँ माफ़ी मैं अपनी इस खता-ए-मुहब्बत की,
के सैलाब - ए - मुहब्बत नज़रों से मेरी, अब छूट रहा है...

और दर्द दे रहा है ये एहसास-ए-गम मुझको,
के बन के तूफाँ, ये कहर-ए-कायनात मुझ पे टूट रहा है...

लगा के गले, ले चल मुझको भी, संग अपने ऐ माही मेरे !
के खता है ये नज़र-ए-खुदा में, 
                  के यूँ ही जाने से तेरे, दिल मेरा टूट रहा है... 


-- महेश बारमाटे (माही)
2nd Feb. 2011

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