इल्तिज़ा...
A Loving Request From Someone's Heart...
फर्क पड़ता नहीं मुझको,
A Loving Request From Someone's Heart...
फर्क पड़ता नहीं मुझको,
के आज जनाज़ा उसका उठ रहा है...
के जो कल तक बस यूँ ही मुझसे रूठा था,
आज वो जिंदगी भर के लिए मुझसे रूठ रहा है...
खता बस हुई थी इतनी मुझसे,
के मजबूरियों में छोड़ा था मैंने उसको,
पर आज देखो,
हाथों से उसके,
दामन मेरा छूट रहा है...
बस एक बार आजा, ओ साजन मेरे !
के माँग लूँ माफ़ी मैं अपनी इस खता-ए-मुहब्बत की,
के सैलाब - ए - मुहब्बत नज़रों से मेरी, अब छूट रहा है...
और दर्द दे रहा है ये एहसास-ए-गम मुझको,
के बन के तूफाँ, ये कहर-ए-कायनात मुझ पे टूट रहा है...
लगा के गले, ले चल मुझको भी, संग अपने ऐ माही मेरे !
के खता है ये नज़र-ए-खुदा में,
के यूँ ही जाने से तेरे, दिल मेरा टूट रहा है...
-- महेश बारमाटे (माही)
2nd Feb. 2011
wow achi poem yaar phelel kyun choda haath ek baar chuth gaya wapas nahi aatha par woh itni important hain phir se try karo samajavo ki woh kittni imp hain tere liye
जवाब देंहटाएंNice poem .
जवाब देंहटाएंअब एक सवाल हमारा है। जिसे हल करना बिल्कुल भी अनिवार्य नहीं है।
क्या आप जानते हैं कि कोई आया या नहीं आया लेकिन ब्लॉगर्स मीट वीकली का आयोजन बेहद सफल रहा ?