छोटे - छोटे दरवाजे
मोटी - मोटी दीवारें थीं
मेरे गाँव वाले घर में
न किसी के दिल में दरारें थीं।
बड़े छोटे से कमरे में
पूरा परिवार रहता था
सुख - दुख के सारे मौसम
हर कोई संग सहता था।
पुरानी एक तश्वीर टंगी थी
पुरखों वाले कोने में
डर का कोई सवाल नहीं था
घुप्प अँधेरों में सोने में।
नीम की छाँव में बीते शामें
दादी - नानी की कहानियों में सदियों के कारनामे
बीत जाता था पूरा साल
पहन के चंद फटे पायजामें।
छोटी सी खुशी में भी
पूरा गाँव खुश होता था
ग़म की अगर खबर मिले तो
पूरा गाँव संग हमारे रोता था।
आधुनिकता की भागदौड़ में
वो छोटा दर-ओ-दरवाजा टूट गया
जानें कहाँ गया वो जीवन माही!
लगे जैसे भगवान हमसे रुठ गया..।
- महेश बारमाटे "माही"
7 मई 2018
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 10 मई 2018 को प्रकाशनार्थ 1028 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंअब सादा जीवन रास नहीं आता किसी को माही जी। सरल जीवन मतलब भगवान के बहुत नजदीक होना।
जवाब देंहटाएंवाह
यादों का पिटारा है
आपकी रचना।
चकाचौंध में सब खो गया है,,,
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी प्रस्तुति
वचपन गांव में गुजरा,
जवाब देंहटाएंपेड़ की छांव में गुजरा,
Awesome 👍
जवाब देंहटाएंSuper sir
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