तुम एक सपने में आई थी
सपना छोटा सा था
और तुम मुस्कुराई थी
एक कोई दोस्त भी था साथ तुम्हारे
और मेरे दोस्तों ने महफ़िल जमाई थी।
बैठी थी तुम मुझसे चिपक के
और हर बात पे अपनी मौजूदगी जताई थी।
कुछ शरारतें की
थोड़ी बहुत बातें की
तुम्हारी शरारतों पे कुछ
हिदायतें मैंने भी समझाई थी।
फिर भी तुम्हें कोई भी
बात समझ में न आई थी।
आज पहली बार
हाँ! शायद पहली बार तुम
सपने में आई थी।
अचानक ही टूटा सपना
और आँख खुल गई
खुलते ही आँख
ख़ुशी के आंसुओं से भर आई थी।
क्योंकि आज तुम्हारी शरारतें
मुझे सचमुच भायी थी
पहली बार माही!
तुम सपने में आई थी।
-महेश बारमाटे "माही"
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