रविवार, 2 जनवरी 2011

महेश हूँ मैं...

 
कुछ ख़ास नहीं, कोई खूबी मेरे पास नहीं,
फिर भी खुद में ही विशेष हूँ मैं ,
हाँ,
          वही सीधा - साधा इंसान
                   महेश हूँ मैं...

मुझमे है बस यही एक खूबी...
के मेरी दुनिया तो है बस "कहानी - कविताओं" में डूबी...

आज लोगों ने बस इन्ही की बदौलत मुझको है जाना,
         पर न मिला मुझको कोई भी ऐसा,
                  जिसने मुझको हो थोड़ा भी पहचाना...

अपनी ही दुनिया में खुश रहता हूँ मैं,
अक्सर महफ़िलों में ही चुप रहता हूँ मैं...

इसी कारण आज लोगों की नज़रों से दूर हूँ मैं,
और बेवजह ही किसी के प्यार के इल्ज़ाम में मशहूर हूँ मैं...

लोगों ने अक्सर मुझे, 
           रास्ते का है वो पत्थर समझा,
                      के गर मन किया तो संग बैठ के,
                                         थोड़ा आराम कर लिया,
और नहीं तो मुझको, या तो अनदेखा किया, 
                                          या उठा के फेंक दिया...

लोग सोचते हैं की मुझको कभी दर्द नहीं होता,
मेरी जिंदगी का कोई भी मौसम, कभी गर्म - सर्द नहीं होता...

पर कैसे बतलाऊं मैं सबको, के इस दिल को भी लगती ठेस है,
             और ये सब आपको बतलाने वाला, 
                    और कोई दूसरा नहीं, 
                      केवल "महेश" है...

बस अपनी इन्ही खूबियों के कारण,
        दुनिया की अदालत का बहुत विचित्र case हूँ मैं...
लोगों ने गर समझो तो विशेष,
         वरना वही पुराना "महेश" हूँ मैं...

सच कहूँ...

जीता था मैं कभी खुद के लिए,
पर आज जीता हूँ, बस एक ज़िद के लिए...

के मरने से पहले,
     एक ऐसा काम मैं कर जाऊं,
जिंदगी की एक शाम...
    अपने चाहने वालों के नाम कर जाऊं...

पर उस शाम से पहले मेरे पास, 
                          अभी काफी समय शेष है...
उस शाम से पहले करूँ मैं कोई काम ऐसा,
                     के लोग दूर से ही देख के बोलें, 
अरे ! 
       यही तो अपना 
                       "महेश" है...

- माही (महेश बारमाटे)
15th March 2009

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