सोमवार, 22 जून 2020

एहसासों का समंदर


एहसासों का समंदर है
भावनाओं की कश्ती है
ख्वाबों का साहिल है
धुन्ध में भी आँखों में मस्ती है।

लिख दूँ तो हासिल है
छुपा लूँ तो कातिल है।

एहसासों की कहानी है
जो आँखों की जुबानी है।

चीखते हैं सन्नाटे
भीड़ में तन्हाई हैं बाँटते

कुछ अल्फ़ाज़ 
कुछ शायरी है
कुछ बेहोशी 
कुछ खुमारी है।

मेरे अंदर आज
भी एक दरिया उफनता है
कुछ खुमार सा चढ़ता है
कुछ तेरे मन सा ठहरता है।

मेरी कहानियों में बस
माही तू ही तो बसता है
मेरी मुस्कान के संग 
हमेशा तू ही तो हँसता है।

तुझे खो न दूँ कहीं
जो तू मिले, 
तो खो न जाऊं कहीं।

बाँहो में तेरी
जन्नत की सैर है
तुझसे कब रहा 
मेरा कोई बैर है।

खत्म होती नहीं
जो कहानी तेरे नाम लिखता हूँ
कभी आईने में देख माही!
मैं कुछ - कुछ तुझसा ही तो दिखता हूँ।

हाँ! तुझसा ही तो दिखता हूँ..।

- महेश "माही"

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