बुधवार, 9 मई 2018

मेरे गाँव वाले घर में..



छोटे - छोटे दरवाजे

मोटी - मोटी दीवारें थीं

मेरे गाँव वाले घर में

न किसी के दिल में दरारें थीं।


बड़े छोटे से कमरे में

पूरा परिवार रहता था

सुख - दुख के सारे मौसम

हर कोई संग सहता था।


पुरानी एक तश्वीर टंगी थी

पुरखों वाले कोने में

डर का कोई सवाल नहीं था

घुप्प अँधेरों में सोने में।


नीम की छाँव में बीते शामें

दादी - नानी की कहानियों में सदियों के कारनामे 

बीत जाता था पूरा साल

पहन के चंद फटे पायजामें।


छोटी सी खुशी में भी

पूरा गाँव खुश होता था

ग़म की अगर खबर मिले तो

पूरा गाँव संग हमारे रोता था।


आधुनिकता की भागदौड़ में

वो छोटा दर-ओ-दरवाजा टूट गया

जानें कहाँ गया वो जीवन माही!

लगे जैसे भगवान हमसे रुठ गया..।


- महेश बारमाटे "माही"

7 मई 2018