बुधवार, 13 अगस्त 2014

तुम थे वहाँ...

तुम थे वहाँ
करते मेरा इंतज़ार
बैठ बिस्तर के कोने में
था मेरे आने का एतबार।

जाने कितनी देर
बैठे थे तुम वहाँ
मैंने की देर
गर्म मौसम में जैसे सर्द हवा।

हाँ! गलती थी मेरी
कि मैं न आया
किया इंतज़ार तुमने
और मैं पछताया।

पर क्या करता मैं
तुम जो हो खफा मुझसे
करनी नहीं है बात तुम्हे
और चाहते हो वफ़ा मुझसे।

तेरे होने का एहसास मुझे
तेरे और करीब ले आता है
तेरी मौजूदगी बताती है
कि ये एहसास तुझे
कितना तड़पाता है।

न तड़प
आ बाँहों में भर मुझे
एक पल को हो के मेरा
एक नगीना सा
दिल के ताज पे जड़ मुझे।

आ मेरा हो जा
मुझमे आज तू खो जा
ख्वाबों में सोया है अक्सर
आ खो के मुझमे तू सो जा।

कर ख़त्म इंतजार को अब
बरसा मुझपे अपने प्यार को अब
बिता दे सारी ज़िन्दगानी अपनी माही!
इस पल में पूरा कर अपने एतबार को अब।

महेश बारमाटे "माही"

रविवार, 10 अगस्त 2014

पराया..

क्या चाहूँ
और क्या हो जाता है,
जिसे चाहूँ
वो पराया हो जाता है।

इश्क़ की आबो-हवा
मेरी महफ़िल में न थी कभी
जीता रहता हूँ ग़लतफ़हमी में अक्सर
करीब जाऊं तो दिलबर मेरा
बस एक साया हो जाता है।

समझ भी न पाया कभी
और जान भी न पाया कभी
ये इश्क़ है या और कुछ
इक पल में ही किया धरा
सब जाया हो जाता है।

या रब!
बहुत देखी तेरी खुदाई
मिला के क्यूँ दी ये जुदाई
कोई अब तक न अपना सका इस दिल को माही!
और हमेशा ये दिल ही क्यूँ पराया हो जाता है।

- महेश बारमाटे "माही"

बुधवार, 6 अगस्त 2014

यकीन नहीं होता...

यकीन नहीं होता
कि तू अब मुझसे दूर चली गई है
कि जाते - जाते तू मुझसे भी
मशहूर हो गई है।

तुझे पाने की चाहत थी
अपना बनाने की चाहत थी
कुछ – कुछ तेरी भी हसरत थी
के तुझे भी मुझसे मुहब्बत थी।

मुहब्बत थी ऐसे
के एक दूजे का होना था
खो कर तेरी बांहों में
बस तुझमें ही खोना था

हो कर बस तेरा
तुझमें एक दुनिया बसाना था,
और उस दुनिया में माही!
मुझे तो बस तेरा हो जाना था।

पर शायद
किस्मत को अपनी
ये मंजूर न था
हालात तो थे
पर मैं मजबूर न था

मजबूरी थी तेरी
मजबूरी थी मेरी
दिलों के दरमियान
न ये दूरी थी मेरी
न ये दूरी थी तेरी।

फिर भी हम
बिना मुलाक़ात के ज़ुदा हो गए
तुम कुछ यूं रूठे मुझसे
के बिना बात के खफा हो गए।

हम एक हो सकते थे शायद
जैसे हर रोज हुआ करते थे
दूरियाँ मायने नहीं रखती थी
के ये दिल रोज मिला करते थे।

खैर! जो हुआ
सो हुआ
आज भी तेरी तस्वीर निहारता हूँ।
तू खफा है
मेरी भी यह सजा है
के तुझे हर घड़ी पुकारता हूँ।

यकीन नहीं होता
अब भी
के तू मुझसे दूर चली गई है
तेरी तस्वीर है बातें करती मुझसे
के किस्मत तो कहीं मेरी
छली गई है।

तू रहे जहाँ
बस खुश रहे
अश्क-ए-दिल से भी तुझे दुआ देता हूाँ
कतरा – कतरा तुझे याद करता है माही!
हर रोज अश्कों का समुंदर मैं
बस तेरी याद में यूं ही पीता हूँ।

- महेश बारमाटे “माही”