गुरुवार, 14 जनवरी 2010

मंज़िल

मंज़िल

हर सफ़र की मंजिल मशहूर नज़र आती है,
पर मेरी किस्मत ही कुछ ऐसी है कि हर बार दिल्ली दूर नज़र आती है.

जो आँखे देती थीं कभी हौसला हमको,
आज जाने क्यों वो मजबूर नज़र आती हैं ?

पूरी होती नहीं कोई आश मेरी,
जाने क्यों किस्मत को मेरी हर सोच "नामंजूर" नज़र आती है ?

आँखों के सामने से मंजिल अक्सर, दूर और भी दूर होती जाती है...
जाने क्यों किस्मत में मेरी हर बार दिल्ली दूर नज़र आती है ?

पर फिर भी एक आख़िरी आश के साथ, निकल पड़ता है "महेश" हर बार,
क्योंकि हर मंज़िल मुझे "खुदा का नूर" नज़र आती है.

- By
Mahesh Barmate
Jan. 11, 2010

रविवार, 3 जनवरी 2010

दलदल

दलदल

हर देश हर शहर में एक ऐसा दलदल होता है,
जहां लोगों की रातें रंगीन करने वाला हर शख्श कमल होता है.

ये वो दलदल है, जहाँ न कोई न कोई गुलाब होता है.
पर एक बार के लिए ही सही हर आदमी के मन में ऐसे ही किसी कमल का ख्वाब होता है.

सारा जहान इसे एक गन्दा दलदल कहता है,
फिर भी इस दलदल के इन फूलों को अपनी आँखों का काज़ल कौन कहता है?

इस गंदे दलदल से इन सुन्दर कमलों को,
तो हर कोई बहार निकलना चाहता है...
पर कौन है ऐसा, जो इन कमलों को,
साफ़ सुथरी जगह देना चाहता है?

गर ये बाहर आ भी जाएँ, इस घिनौने दलदल से,
तब भी यहाँ हर कोई उन्हें, सिर्फ सजावटी फूल ही मानता है.
ये वो फूल नहीं जिन्हें, भगवान के चरणों में अर्पण किया जाए,
बल्कि इस FAST ज़माने में तो हर कोई इन्हें, बस USE - N - THROW मानता है.

ऐ दुनिया वालों! अपने दिल में झाँक कर देखो जरा...,
फिर मुझसे कहना के तुम्हारे दिल में है कितना गन्दा दलदल भरा?

जो कहा मैंने, वो बात सच है,
ये तुम्हारा और मेरा दिल जानता है.
आज "महेश" तुमसे सिर्फ इतनी ही भीख मांगता है.

के देनी हो इन कमलों को अगर कोई सुन्दर जगह,
तो निकाल फेंको उस नफरत के बीज को अपने दिलों से,
जो उनके लिए तुमने अपने दिलों में बोया है, बेवजह.


By
Mahesh Barmate

6th Sep. 2009