न दे जवाब ऐ दिल मेरे,
शायद तूने भी धड़कना बंद कर दिया...
मर गया इन्सां आज इसीलिए तो अब...
शरीर ने भी अब फड़कना बंद कर दिया...
कैसा था वो रहमो - करम उस खुदा का,
के उसके बन्दों ने भी अब सदके पे उसकी झुकना बंद कर दिया...
खो गई हैं राहे - इबादत,
के लोगों ने अब बहकना बंद कर दिया...
फ़ैलने लगा है राज शैतान का इस कदर,
के खुदा ने भी शायद इस तरफ देखना बंद कर दिया...
फिर भी कायम है किसी दिल में खुदा की सल्तनत,
के शैतान ने भी खुदा से अब लड़ना बंद कर दिया...
सो गया है ज़मीर आज इंसान का,
के उसने भी अब अच्छे काम करना बंद कर दिया...
करीब है अब वक्त - ए - क़यामत,
के घड़ी ने भी अब चलना बंद कर दिया...
खुश हूँ मैं के मिलूँगा अब अपने खुदा से,
के मैंने भी क़यामत की चाह में अब दिन गिनना बंद कर दिया...
अंजाम जो भी मिले खुदा के दर पे,
के मैंने तो जन्नत और दोजख़ को भी अपनी मंज़िल में गिनना बंद कर दिया...
तू भी अब माँग ले माफ़ी, खुदा से ऐ मेरे "माही" !
के पछताएगा गर उसने भी माफ़ करना बंद कर दिया...
महेश बारमाटे "माही"
20th Aug. 2010