रविवार, 20 जून 2021

मुझे बेवफा न समझ..


तेरी सोच का मैं गुमान हूँ
मुझे इश्क़ की बहार न समझ।
मैं मजबूरियों में जो चला गया
मुझे बेवफा न समझ।

किसी दिन वापस आऊँगा
मुझे कल की बात न समझ।
मुझे समय पर है यक़ीन
मुझे वस्ल-ए-रात न समझ।

मेरी गुमनामियाँ तुझसे ही हैं
जो तू न मिला तो मैं क्या रहा
लिख रहा हूँ आज भी एक खत
मुझे डाकिया न समझ।

क्या पता, है ये क्या लिखा
मैं अनपढ़, मैंने कुछ न सीखा।
मेरे हाथ बस चलते रहे
कलम को नागवार न समझ।

थोड़ी तवज्जोह में खुश हो लूँ मैं भी
अगर वो तेरी तरफ से हो..।
दिल का कोना-कोना धड़कता है अब भी तेरे ही लिए
मुझे कोई ग़ैर यार न समझ..।

- महेश "माही"

बुधवार, 16 जून 2021

मेरे शहर की खिड़कियाँ

मेरे शहर की खिड़कियाँ
अब जंगलों में सिमट रही हैं
रौशनी का पता नहीं है
और ऑक्सीजन की भी कमी है।

सुना है कोई बड़ी बीमारी आई है
मैंने नन्हें कंधों पे लाशें देखी हैं
कोई आस्था के नाम पर लूट रहा है
कोई प्राइवेटाइजेशन में लुट रहा है।

सरकारें धोखा दे रही हैं
सरकारें धोखा खा रही हैं
पहले ईमान बिक जाते थे 
आज देश बिक रहा है।

है खरीददार कई
कुछ हुकूमतें तैयार हो रही हैं
घरों के कैदखानों में सिमटती नन्हीं ज़िंदगियाँ
खिड़कियों से शहर को ताक रही हैं।

मेरे शहर की ये खिड़कियाँ..

- महेश "माही"