शनिवार, 21 जून 2014

दिल के किसी कोने में...

दिल के किसी कोने में
एक दर्द छुपा रखा है
अपनी तन्हाइयों को मैंने
खुद से बचा रखा है...

जाने किस दर्द की
दवा बन के तू आया था
के तेरा ग़म भी मैंने
अपने इस दर्द-ए-दिल से बचा रखा है।

रोता है दिल
तन्हाइयों में अक्सर
की थी जो दुआ - खुशी की तेरी
इसीलिए इन अश्कों को मैंने
आँखों में जमा रखा है...

एक नदी सी थमी है
कुछ - कुछ बर्फ भी जमी है
सैलाब है कोई तेज़ाबों का
आज अपना हर दर्द जला रखा है ।

वो तो लिख गया कहानी मेरी
बरसों पहले "माही"
आज जाना के क्यों दिल ने खुद को
दर्द का कब्रिस्तान बना रखा है।

- महेश बारमाटे "माही"

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