शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

इल्तिजा


न दे जवाब ऐ दिल मेरे,
शायद तूने भी धड़कना बंद कर दिया...

मर गया इन्सां आज इसीलिए तो अब...
शरीर ने भी अब फड़कना बंद कर दिया... 

कैसा था वो रहमो - करम उस खुदा का,
के उसके बन्दों ने भी अब सदके पे उसकी झुकना बंद कर दिया...
खो गई हैं राहे - इबादत,
के लोगों ने अब बहकना बंद कर दिया...

फ़ैलने लगा है राज शैतान का इस कदर,
के खुदा ने भी शायद इस तरफ देखना बंद कर दिया...

फिर भी कायम है किसी दिल में खुदा की सल्तनत,
के शैतान ने भी खुदा से अब लड़ना बंद कर दिया...

सो गया है ज़मीर आज इंसान का,
के उसने भी अब अच्छे काम करना बंद कर दिया...

करीब है अब वक्त - ए - क़यामत,
के घड़ी ने भी अब चलना बंद कर दिया...

खुश हूँ मैं के मिलूँगा अब अपने खुदा से,
के मैंने भी क़यामत की चाह में अब दिन गिनना बंद कर दिया...

अंजाम जो भी मिले खुदा के दर पे,
के मैंने तो जन्नत और दोजख़ को भी अपनी मंज़िल में गिनना बंद कर दिया...

तू भी अब माँग ले माफ़ी, खुदा से ऐ मेरे "माही" !
के पछताएगा गर उसने भी माफ़ करना बंद कर दिया...

महेश बारमाटे "माही"
20th Aug. 2010

शनिवार, 18 दिसंबर 2010

वो चाँद सा मुखड़ा...



वो प्यारा सा मुखड़ा, 
जैसे चाँद का टुकड़ा...

आँखों में नींदें भरा,
अपने "Bag" को सिरहाना बना...

सो रही है वो, यूँ नींद की आगोश में, 
जैसे डूबी हो वो, किसी गहरी सोच में...

शायद कोई सपना, उसकी आँखों में पल रहा होगा,
या आने वाला कल, उसके दिलो - दिमाग में चल रहा होगा...

जाने किस सोच में डूबी होंगी आँखे उसकी,
या किसी अपने को सुनने के लिए तड़पती होंगी बातें उसकी...?

नींद में भी आँखे उसकी हैं शायद कुछ कह रहीं,
के आज वो मेरे मन मष्तिस्क को, इक स्वप्न परी सी है लग रही...

उसकी इस अदा ने मुझपे, जाने कैसा जादू ढाया है,
के देख के उसका चंचल मुखड़ा, आज मुझे कोई अपना याद आया है...

रुखसारों को चूमती उसकी जुल्फें,
चुरा रही हैं दिल मेरा चुपके - चुपके...

हाय ! कैसे सम्भालूँ अब अपने इस पागल दिल को,
के लगता है जैसे पा लिया हो, आज इस राही ने भी अपनी मंज़िल को...

नींद में उसका यूँ मुस्कुराना,
जैसे सुहाग की सेज पर, दुल्हन का शर्माना...

ज़ालिम हर अदा ने उसकी, ऐसा ज़ुल्म मुझपे ढाया है,
के आज एक मेनका ने फिर, किसी विश्वामित्र का दिल पिघलाया है...

ये दुआ कर रहे थे हम,
के दिल की बातों को अब ले वो सुन...

और देखो दुआ मेरी अब पूरी होती नज़र आई है,
पलकों ने उसकी देखो ली अभी - अभी अंगड़ाई है...

आह ! मेरी सोच से भी परे,
नयन हैं उसके नीले नीले...

नीले नयनो की कमान से, उसने ऐसा बाण चलाया है,
 के एक ही वार में उसने, ये तीर - ए - नज़र सीधा दिल के आर - पार पहुँचाया है...

वो कर के घायल हमको, फिर खो गयी नींद की आगोश में,
और दिल देकर भी, अब हम न रहे होश में...

नींद में उसका यूँ मुस्काना,
लगता है जैसे अपनी जीत पर उसका इतराना...
खुदा कसम, मार डालेगा अब मुझे, 
उसका यूँ चहरे से अपनी जुल्फें हटाना...

वो तो सो गई, बस एक प्यारी सी मुस्कान देकर,
अब जाने कैसे कटेगा ये सफ़र मेरा, दिलो - जाँ खोकर...

अब तो खुदा से बस यही दुआ करता है दिल मेरा, "माही"...
के लूटा है जिसने चैनो - करार इस दिल का,
बस वही बने अब मेरी जिंदगी के सफ़र का हमराही...

महेश बारमाटे "माही"
12th Dec. 2010

गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

वादा


तन्हा ही आए थे, तन्हा ही जायेंगे,
इक मुलाकात का किया था जो वादा हमने,
मरने से पहले वो हर वादा निभा जायेंगे...

तुम इंतज़ार न करना हमारा,
हम मिलने जरूर आयेंगे...
देखे थे ख्वाब हमारी मुलाकात के जो तुमने,
हर वो ख्वाब हम पूरा करते जायेंगे...

रुक जायेगा वक्त, जब हम तुमसे मिलने आएँगे,
अपनी जुदाई के सारे मंज़र,
मेरे वादे के सामने थमते जायेंगे...

तब न रोक पाएगा कोई रकीब भी हमको,
जब हम तेरा दीदार करने आएँगे...

बस मेरी बात पर ऐतबार रखना "माही",
के तुझको रुसवा न किया है कभी हमने,
और न कभी हम ऐसा कर पाएंगे...

By
महेश बारमाटे - "माही"
18th Nov. 2010

शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

ऐतबार


अपनी ही परछाइयों से डरने लगा हूँ मैं...
के जब से तुझसे प्यार करने लगा हूँ मैं...

अन्जान है तू आज भी मेरे हाले - दिल से...
इस बात का कोई गम नहीं मुझे,
बस अब तो तेरे एहसास से भी डरने लगा हूँ मैं...

घूम रहा था मैं इक दफा,
आवारा परवाने की तरह...
के जब से देखा है तेरी शमा - ए - मुहब्बत,
बस इक ठंडी आग में जलने लगा हूँ मैं...

तुझे पा के भी, ऐ सनम !
तेरी दगा - ए - मुहब्बत  से कभी तेरे हो न सके हम...
पर फिर भी आज तेरा ही इंतज़ार करने लगा हूँ मैं...

मेरा मुकाम कहाँ तय था,
एक तेरा दिल ही तो बस मेरा आश्रय था...
टूट चूका हूँ आज इतना मैं, ओ मेरे माही !
के तेरी बेवफाई से भी वफ़ा करने लगा हूँ मैं...

ठुकरा दिया जिसने मुझे और मेरी मुहब्बत को,
आज उससे और भी प्यार करने लगा हूँ मैं...
के कभी तो तरस आएगा खुदा को भी मुझ पे "माही",
किस्मत पे अपनी, इतना तो ऐतबार करने लगा हूँ मैं...

महेश बारमाटे "माही"
6th Nov. 2010

शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2010

सबक... प्यार का..

सबक... प्यार का..


किसी को सुकून मिलता है,
किसी का गम उजागर होता है...
ज़िन्दगी के इन तन्हा रास्तों में जब कोई पराया,
प्यार का सागर बन के उतरता है...


एक पल में ही वो पराया, अपनों से भी प्यारा हो जाता है...
क्या कोई बताएगा मुझे, के इस सागर में इतना प्यार कहाँ से आता है ?


इस प्यार के सागर में हम, दुनिया भूल जाते हैं...
जीना क्या, हम तो मरना भी भूल जाते हैं...
अपने परायों को तो छोड़ो, जिसने हमें किया पैदा,
हम तो उन्हें तक याद करना भूल जाते हैं...


चार दिनों दा प्यार हमारा, बीस सालों के प्यार पर भारी पड़ जाता है...
वो इकलौता मेरा सनम, मेरे लिए तो दुनिया सारी बन जाता है...


कुछ ऐसा ही हुआ साथ मेरे भी, जब हुआ मुझे भी किसी से प्यार...
प्यार में उसके हो गई मैं बावरी, और छोड़ा घर - बार...


मेरा सनम, मेरा माही, मेरी सारी ज़िन्दगी का हमराही...
आज भूल गई प्यार में उसके, के क्या था गलत और क्या है सही...


साथ मिला जो उसका, तो मैं भी बागी हो गई...
भाग कर संग उसके, आज दुनिया कि नज़रों में मैं भी दागी हो गई...


कर दिया इक बार जो खुद को उसके हवाले,
फिर न सम्भला दिल, लाख सम्भाले...


हो गई मैं उसके प्यार की दासी,
पर आज क्यों छाई, ज़िन्दगी में मेरे ये उदासी...?


अपनों ने नाता तोड़ा, गैरों ने भी पूछा नहीं...
आज वो भी छोड़ के मुझे चला गया, प्यार में जिसके मुझे कुछ सूझा नहीं...


जोगन हो के तेरे प्यार में, आज दर - दर भटक हूँ रही...
हे भगवान ! क्या हो गया था मुझको, क्यों सच मुझको दिखा ही नहीं ?


आज मेरे प्यार कि निशानी, कोख में है मेरे,
पर अपना नाम देने इसे, आज कोई तैयार नहीं...
क्यों किया उसने मेरे साथ ऐसा,
जब था उसको कभी मुझसे प्यार नहीं ?


मेरी ज़िन्दगी तबाह करके,
आज खुश है वो एक और नया विवाह करके...
कर रहा है उसके साथ भी शायद वही,
जो छोड़ दिया उसने मुझे ना जाने कितनी मर्तबा करके...


दिल कोस रहा है उसको, आज लाखों बार...
फिर भी इस दिल के किसी कोने में,
आज भी है उसके लिए प्यार...


क्योंकि मैंने तो दिल से चाहा था उसको,
सारी दुनिया में उसके सिवा, और कोई ना भाया था मुझको...


मैं तो जी गई तेरे प्यार में,
अब तो जी रही हूँ बस इस इंतज़ार में...


के मरने से पहले तुझे भी तड़पता देखना हूँ चाहती...
तू चाहे ना चाहे, पर तुझ संग ही मैं मरना हूँ चाहती...


मेरी सज़ा का तू हक़दार है "माही"...
के तू ही मेरा पहला और आखिरी प्यार है "माही"...


सज़ा भी ऐसी के तुझे हर पल याद रहे...
के हर जन्म में अब, बस तेरा - मेरा साथ रहे...


आज तुझे मैं अपने प्यार का एहसास दिलाना चाहती हूँ...
जो कभी मुझे थी, मैं तुझे भी वो प्यास दिलाना चाहती हूँ...
किया है सच्चा प्यार मैंने तुझसे,
ये सारी दुनिया को विश्वास दिलाना चाहती हूँ...


और चाहती हूँ के दुनिया भी जाने,
के प्यार में धोखा क्या होता है ?
इस प्यार के सागर की गहराई में इन्साँ,
कभी हँसता ही नहीं, बल्कि हमेशा ही रोता है...


न करना ऐसा प्यार ऐ नौजवानों !
गर अपने सपनों को अंत तक साकार करने की ताकत न हो तुम में...
खुदा करे कि मुझ जैसी गलती,
अब की बार करने की हिमाकत न हो तुम में...


टूट जाते हैं घरौंदे, इक छोटी सी गलती से...
बिखर जाता है हर एक तिनका, बस एक नासमझी से...


फिर नहीं मिलता कोई भी आशियाना, सर छुपाने के लिए...
गर प्यार करना है तो बस इतना जान लो,
के प्यार में सीखो सिर्फ खोना,
ये किया जाता नहीं, कभी कुछ पाने के लिए...


                       - Mahesh Barmate (माही)
                          21st Apr. 2010

बुधवार, 6 अक्टूबर 2010

क्यों ?

क्यों ?

किसने था कभी चाहा मुझको,
अतीत में मेरे कोई नहीं जिसने कभी था सराहा मुझको...
डूब रहा था चुपचाप ही अपनी ही तन्हाइयों में,
आखिर क्यों आज तुमने बचाया मुझको ?

                     मेरी ज़िन्दगी का नासूर,
                     जब खुशियाँ देने लगा था मुझको,
                     खुश था शायद बहुत मैं अपने हाल से,
                     फिर क्यों दर्द-ए-दिल तमने दिया मुझको ?

मैं तो भूल चूका था चाहत का हर रास्ता शायद,
फिर तेरा प्यार क्यों इसी रास्ते पर फिर ले आया मुझको?

                    गर लुट चूका था हर राही तेरी मन्जिल का,
                     तो फिर क्यों तुमने अपना माही बनाया मुझको ?

                                                                                     महेश बारमाटेमाही 
                                                                                         5th Oct 2010 

गुरुवार, 23 सितंबर 2010

लौट आओ पापा


जितना चाहा, उससे भी कहीं ज्यादा दे गए तुम मुझको...
पर इक पल में ही क्यों तन्हा, छोड़ गए तुम मुझको...

खो गई है आज मेरी हंसी, के बस आपके बगैर...
के जैसे खो गई हो मेरी ज़िन्दगी, के बस आपके बगैर...

अब तो बस कुछ यादें साथ हैं... 
कभी जो दी थी नसीहत में आपने मुझे, बस वो बातें याद हैं...
तेरी गोद में गुजरी जो, सर्दी की वो गर्म रातें याद हैं...
मेरे जन्मदिन पर जो तुमने दी मुझको, वो सौगातें याद हैं...

कैसे भूलूँ मैं तुम्हे ? 
के जन्म मिला है है तुमसे मुझे...
ज़िन्दगी से क्या शिकवा करूँ अब,
के बस एक गिला है तुमसे मुझे...

के यूँ ही छोड़ गए तुम तब मुझको,
जब मुझे बहुत तुम्हारी ज़रूरत थी...
पर कैसे करूँ गुस्सा भी मैं तुम पर,
 के शायद खुदा को तुमसे, मुझसे भी ज्यादा मोहब्बत थी...


लौट आओ "पापा"...
के ये दिल तुम्हे आज दिल से पुकार रहा है...
और देखो ना माँ के आँसू,
के हर एक कतरा इसका, आपका ही नाम पुकार रहा है...

हर पल याद करता है ये दिल तुमको...
के हमें आज भी आपका ही इंतज़ार है...
ऐ खुदा ! क्या तुम कहोगे ? "मेरे पापा" से मेरे लिए...
के मुझे उनसे आज भी बहुत प्यार है...

वो उनकी डांट और फटकार ...
याद आता है मुझे उनका बस मेरे लिए प्यार...

वो उनके संग - संग हर शाम को घूमने जाना,
और हमेशा ज़िद करके उनसे, खिलौने लेना या आइसक्रीम खाना...

वो मेरा हर परीक्षा में अव्वल आना,
और उनका ऑफिस में ख़ुशी से मिठाइयाँ बँटवाना...

याद आता है मुझे,
उनका हर रात मुझे एक नई कहानी सुनाना...

आज भी ऐसा लगता है "पापा",
के तुम ऑफिस से अभी तक आए नहीं...
और जो वादा किया था ज़ल्दी आने का तुमने मुझसे,
वो भी अभी तक निभाए नहीं...



बस एक बार आ जाओ "पापा", के अब कि बार न जाने दूँगा...
और रुक जाओ हमेशा के लिए मेरे पास,
के तुमको मैं न जाने के सौ नए बहाने दूँगा...

बस एक बार तो आ जाओ "पापा", के यहाँ सबको तुम्हारा इंतज़ार है...
कैसे करूँ मैं लफ़्जों में बयाँ, के इस दिल में तुम्हारे लिए कितना प्यार है...


By 
Mahesh  Barmate
23rd Sept. 2010
2:36 am

शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

महफ़िल-ए-तन्हाई

महफ़िल-ए-तन्हाई


दिन महीने साल, सारे गुजर गए...
वो बदल के दुनिया मेरी, इक पल में यूँ ही बदल गए...

दिखाया जो एक ख्वाब उन्होंने, और हमसे दूर चले गए...
और हम बस उसी ख्वाब में, जिंदगी सजाते रह गए...

लोग कहते हैं के क्या सोच के हमने है उनसे दिल लगाया ?
और हम लोगों को अपने इश्क की गहराई समझाते चले गए...

काश...! के सोच - समझ के हमने भी इश्क किया होता,
पर हम तो दिल की बातों को ही, खुदा का अरमाँ मानते चले गए...

आज भी दिल के अरमानों को अपने अश्कों से बांध के रक्खा है हमने...
के टूट ना पाए दिल और एक भी अरमाँ उनका...
और वो मेरी मुस्कुराहटों को मेरी ख़ुशी समझते चले गए...

डर गए हम के इन अश्कों की बाढ़ में मेरा टूटा हुआ आशियाँ न बह जाए...
और इसीलिए उनकी चाहत में हम इस दिल को और भी डराते चले गए...

दिन महीने साल सारे गुजरते चले गए...
वो आए थे मेरी ज़िन्दगी में रहगुज़र की तरह, 
और हम उन्हें अपना हमसफ़र मानते चले गए...

एक बार तो दिल से याद कर ले मुझे, मेरे "माही"...
के दर पे खुदा के हम तुझको ही याद करते चले गए...

अब तो जो भी सजा मुकम्मल हुई है, खुदा से बेवफाई की...
उस सजा से भी इन्कार न किया हमने...
के तब भी तेर दीदार की फ़रियाद, हम खुदा से करते चले गए...

खुदा ने भी एक और एहसास मंज़ूर किया हमें तेरे नाम का,
और हम उस एहसासे मुहब्बत में, 
"माही" तुझको ही तलाश करते चले गए...

क्या हुआ जो खुदा ने न बख्शी, कोई नई ज़िन्दगी हमको...
पर हम तो हर बार एक नई ज़िन्दगी तेरे नाम करते चले गए...

कभी सुनते थे तुमको, लिख - लिख के जो ग़ज़ल तेरे हुस्न - तेर नाम की...
और अब इस महफ़िल-ए-तन्हाई में बैठ कर,
वही ग़ज़ल तन्हा ज़िन्दगी के संग सुनते और सुनते चले गए...

By
Mahesh Barmate - "माही"
15th Sept. 2010 

बुधवार, 28 जुलाई 2010

तेरी याद

तेरी याद 

तुम मुझे अब याद नहीं करती,
अपने दिल से अब मेरी बात भी नहीं करती...
शायद ज़िन्दगी में तुम्हारी, अब कोई और आ गया है,
इसीलिए अब तुम मुझसे बात नहीं करती...


तुमको तो पता है के जब तेरा दिल मुझे याद करता है,
तब वो मेरे दिल से बस तेरी ही बात करता है...
पर अब तो ये आलम है के तू अब मेरी यादों पे हाथ तक नहीं फेरती...


जानता हूँ के तुम मुझसे प्यार नहीं करती,
और शायद इस दोस्त का इंतज़ार भी नहीं करती...
पर क्या हुआ तेरे उन वादों का,
जिनके बगैर शायद न कभी मेरी ज़िन्दगी नहीं सँवरती...


कहते हैं - दोस्ती और प्यार का इम्तिहान एक जैसा होता है,
मुसीबत के वक़्त किया गया हर एहसान एक जैसा होता है...
आज जकड़ा गया है मुसाफिर, वक़्त की जंजीरों में फँसकर,
और एक तू है जिसने साथ चलने का वादा तो किया,
पर मुझे इस कैद से फ़रार नहीं करती...


जी करता है के आज तुझे कोई बददुआ दे दूँ,
फिर भी दिल में मेरे, तेरी ख़ातिर बस दुआएँ ही भरी हैं...
और गर दूँ भी तो कैसे दूँ तुझे मैं बददुआ कोई,
क्योंकि मेरी किस्मत कभी मेरी बददुआ किसी के लिए भी स्वीकार नहीं करती...


शायद तेरा मेरा साथ बस यहीं पे ख़त्म होना था...
मुझे आज नहीं तो कल तुझसे शायद ज़रूर जुदा होना था...
अब तो बस याद आयेंगे वो पल,
जब दूर होके भी तू मेरे करीब थी हर पल,
वो भी क्या दिन थे, जब तू मेरी किसी बात के लिए इन्कार नहीं थी करती...


आज बस यही दुआ है मेरी के तू खुश रहे सदा...
गर मिलती है हर ख़ुशी तुझे, होकर मुझसे जुदा...
आज आँखे मेरी, तेरी सदा सलामती की हैं दुआ करती,
क्योंकि गर मर भी जाऊं मैं, तो भी ऐ दोस्त ! दुनिया में दोस्ती कभी नहीं मरती...

महेश बारमाटे
27th July 2010

सोमवार, 19 जुलाई 2010

नज़र

नज़र

कर दी दिल कि सारी सच्चाई बयाँ उन्हें,
पर मेरा वो अंदाजे - बयाँ, उन को मेरा रोना नज़र आया...


गर कभी तन्हाइयों में खोया, मैं उनकी याद में,
तो दुनिया को वो मेरा बेवजह सोना नज़र आया...


जिस पे कर दिया दिलो - जाँ निसार,
उसको तो दिल मेरा खिलौना नज़र आया...


वो रूठा मुझसे हर बार और मैं मनाता चला गया ...
क्योंकि मेरा सनम हर बार बहुत शोना नज़र आया...


उसे पा के मैंने जो उसके गमो को अपनाया,
तो लोगों को वो मेरा चैनो - सुकून खोना नज़र आया...


जिसे देखा था मैंने बस एक बार और कर बैठा मैं उससे प्यार, 
आज जब ढूँढा उसे इश्क के गुलिस्ताँ में, तो हर कली में मुझे मेरा माही - मेरा शोना नज़र आया...


डर गया मैं छूने से उसको, के कहीं उस नाजुक कली को कोई चोट ना लग जाए,
और दुनिया को वो उसका मुझे काँटा चुभोना नज़र आया...


छूट गया वो जाने कैसे मेरे हाथों से,
फिर भी मैंने जो संभाला उसे तो उन्हें ये मेरा जान बूझ कर उन्हें खोना नज़र आया...


वो क्या जाने के हमने उनको खो के जाने क्या पाया है,
उनकी यादों को सीने में रख के अपना ये दिल मैंने गंवाया है...
धड़क रही हैं आज भी यादें उनकी, सीने में मेरे धड़कन की तरह,
और सबको ये मेरा कब्र में भी कराहता हुआ होना नज़र आया...


आज दुनिया वाले उन्हें मेरे सामने "बेवफा", कह के बुलाते हैं,
रोज मेरी कब्र पर आके मुझे मौत की नींद सुलाते हैं...
ये तो मेरा दिल ही जानता है के क्या मज़बूरी थी मेरे यार की,
पर शायद मेरी बेवफाई से जो निकले थे उसके आँसू, वो इस खुदगर्ज़ जहाँ को बस एक खिलौना नज़र आया 


बेवफा तो मैं था जो उनसे प्यार कर बैठा,
कुसूर बस इतना था के इस दिल पे ऐतबार कर बैठा...
आज कह के उन्हें बेवफा, क्यूँ अपनी मोहब्बत को बदनाम करूँ,
मुझे इस दुनिया की क्या परवाह, 
जिसे उन्हें खो के भी अपनी यादों में बसा लेना बस मेरा खोना नज़र आया...


आज आँखें बंद होकर भी मुझे तो, वो ही मेरा माही...
और वो ही मेरा शोना नज़र आया....

महेश बारमाटे
13 July 2010

रविवार, 18 जुलाई 2010

तेरी ख़ुशी के लिए..

तेरी ख़ुशी के लिए...

जब तुम मेरे करीब आए...
तब अपनी हंसी मैंने दे दी तुझे, सिर्फ तेरी ख़ुशी के लिए...
तू ने चाहा, तो अपनी हर ख़ुशी दे दी तुझे, सिर्फ तेरी ख़ुशी के लिए...

तू ने जो माँगी एक नज़र,
तो ये आँखें ही कर दी तुझ पे न्योछावर, सिर्फ तेरी ख़ुशी के लिए...

जब तू मेरी जाँ बन गई,
तो सारी जिंदगी दे दी तुझे, सिर्फ तेरी ख़ुशी के लिए...

दिन का चैन और रातों का करार,
सब कर दिया मैंने, तेरी ही खुशियों पे निसार...
सिर्फ तेरी ख़ुशी के लिए...

जो कुछ चाहा तुमने, हर वो ख़ुशी ला के दी मैंने,
तू ने कहा था के मुझसे तू आएगी एक बार फिर मिलने...
और कर के मैंने तुझ पर ऐतबार, किया बरसों बस तेरा इंतजार...
सिर्फ तेरी ख़ुशी के लिए...

एक दिन जब तू ने चाही मुझसे दूरियाँ...
वो भी दे दी मैंने तुझे, बस तेरी ख़ुशी के लिए...
और तू ने कहा जो के "न याद रखना कभी हमें"
तब वो भी माना मैंने... बस तेरी ख़ुशी के लिए...

अब जब तू नहीं थी मेरे पास,
तब भी लिखता रहा मैं... सिर्फ तेरी ख़ुशी के लिए...
तुझसे दूर होकर भी,
तुझसे ही प्यार करता रहा मैं... सिर्फ तेरी ख़ुशी के लिए...

तू ने माँगी जब मुझसे मेरी नफ़रत,
वो भी दे दी मैंने तुझे, भूल  के अपनी सारी मुहब्बत...
सिर्फ तेरी ख़ुशी के लिए...

पर आज देखो, ये वक़्त भी क्या नसीब लाया है...
आज एक बार फिर मैंने तुझे, अपने करीब पाया है...

और छुपा रहा हूँ आज, तुझसे अपनी आँखें नम...
सिर्फ तेरी ख़ुशी के लिए...
चाहता हूँ के भूल जाएँ अब, हम अपने सारे रंजो-गम,
सिर्फ तेरी ख़ुशी के लिए...

पर आज भी न समझ पाया मैं तुझे,
के आज पास आकर भी, क्यों चाहिए फिर दूरी तुझे ?
क्या आज भी न मिलेगी, कोई प्यारी ख़ुशी मुझे,
जो ये दिल फिर से नहीं कर पा रहा है नाउम्मीद  तुझे ?
अब जो भी हो, ये तो है, बस तेरी ख़ुशी के लिए...

न जाने क्यों तेरे दिल में अब भी एक कसक बाकि है,
के मैंने जो कुछ भी किया, वो अब भी तेरे लिए नाकाफ़ी है ?

और माँग रही है तू एक और ख़ुशी मुझसे,
शायद इस बार मेरी ख़ुशी के लिए...
और वो भी न जाने क्यों दे रहा हूँ मैं तुझे,
सिर्फ तेरी ख़ुशी के लिए...

माना के ये दिल, आज भी तेरे प्यार के नाकाबिल है,
पर आज भी मेरी हर ख़ुशी तेरी ही खुशियों में शामिल है...

इसीलिए आज फिर वही कर रहा हूँ मैं, जो माँगा है तू ने मुझसे...
क्या हुआ जो आज हम साथ नहीं, मैंने तो हर पल प्यार किया है तुझसे...

और आज जा रहा हूँ छोड़ कर ये जहाँ,
बस तेरी एक तेरी ख़ुशी के लिए...

महेश बारमाटे 
12th July 2010
12:15 pm

सोमवार, 5 जुलाई 2010

"एहसास"

"एहसास"


किसके लिए रोऊँ और क्यों आँसू बहाऊँ ?
आखिर कौन है यहाँ मेरा अपना, जिसकी खातिर आज हर गली रोता गाऊँ ?

मेरी किसी ख़ुशी में तो कोई, साथ न था कभी मेरे, गम तो बहुत दूर की बात है,
तन्हा ही आया था कभी मैं इस जहाँ में और आज भी वही तन्हा अँधेरी रात है... |

जो चाहा वो मिला मुझको और जिसे चाहा वो तो बस एक ख्वाब है...
फिर भी लोग कहते हैं - "ऐ महेश ! तू तो अरबों तारों के बीच एक आफ़ताब है "...

पर ये नासमझ लोग क्या जानें, के जो दीखता है वो तो बस एक ख्वाब है...
जिसे चाँद कहा है लोगों ने आज, उसके पीछे भी हमेशा एक काली अँधेरी रात है...

उसी रात की तन्हाई ने मुझसे, आज मेरा हर गम छीन लिया,
मेरी खुशियाँ, मेरा वजूद और मुझसे मेरा, प्यार भरा मौसम छीन लिया...

अब जब कोई भी नहीं है मेरे पास में, 
तो अब आँसू बहाऊँ मैं किसकी आश में ?
जी रहा हूँ मैं तो अब बस इसी विश्वास में, 
के यकीन करेगा ये जहाँ भी एक दिन... मेरे "एहसास" में... 

By...
The Unrealistic...
माही... (महेश बारमाटे)
3rd July 2010 

सोमवार, 10 मई 2010

Papa...


PaPa...


तुमसे मैंने न चाहा था, कुछ पाना,
पर तुम बहुत कुछ दे गए...

तुमको न चाहा था, मैंने कभी खोना,
पर न जाने तुम कहाँ खो गए ?

आज ढूंढता हूँ, मैं तुम्हे यहाँ - वहाँ,
पर न जाने छुप गए हो तुम कहाँ ?

एक बार तो बता देते तुम,
तो मैं तुम्हे न जाने देता कभी...
मेरे दिल कि बात, दिल में ही रह गयी,
के "प्यार तुमसे, मैं भी करता हूँ....
ये जाना था मैंने, बस अभी - अभी..."

By
Mahesh Barmate
28th Apr 2007
12:15 am


(This Poem is Dedicated to My Father Late Mr. C. D. Barmate)

रविवार, 11 अप्रैल 2010

मैं बदल गया...

मैं बदल गया...
मैं बदल गया उसे बदलने के लिए,
पर वो ही न बदला कभी, बस मेरे लिए...

मर गया मैं आज, उसकी ख़ुशी के लिए,
पर तब भी वो न आया मेरी, मय्यत के संग चलने के लिए...

हर ख़ुशी को उसके कदमों पे ला दिया,
उसके लिए खुद को एक कहानी बना दिया,
पर समय तक न निकाला कभी, मुझे पढने के लिए...

जिसने सिखाया था मुझे के "बदलाव ही जिंदगी है...",
आज वो ही मुझसे है कह रहा के
"चाहे लाख बदल जाना तुम, पर न बदलना कभी बस मेरे लिए..."

चार पल कि जिंदगानी के चारों पल, बिता दिए उसकी आशिकी के लिए,
और आज देखो,
दर पर खड़ा है वो मेरे,
मुझसे पाँचवा पल मांगने के लिए...

उसकी प्यास में भटकते रहे हम, इश्क के रेगिस्ताँ में,
और वो समझे, के हम निकले हैं बस, धूप सेंकने के लिए...

दिल निकाल के दे दिया हमने उन्हें,
और वो समझे के ये प्यार भरी चीज तो है बस खेलने के लिए...

मैं तो बस बदल गया...
उसकी ख़ुशी में अपनी ख़ुशी तलाश करने के लिए...
और उसे लगा के मैं बदल गया, बस एक खुदगर्ज़ इंसान बनने के लिए...

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Mahesh Barmate
17th March 2010
5:28 pm

मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

वो कौन था...?

वो कौन था...?
वो कौन था,
जो हर मुलाकात में रहा मौन था?

आज फिर हुई उससे मुलाकात ऐसी,
के लगा आज अमावस भी खिली हो चांदनी रात जैसी...

सोचा के लबों पे आज तो कोई बात आएगी,
और बातों - बातों में गुजर ये रात जाएगी...

पर जाने वो "क्या" और "कौन" था,
क्योंकि आज भी रहा वो पहले की तरह मौन था..?

हमें लगा के शायद वो, अँखियों से कर रहा था अपना अंदाज़े - बयाँ,
पर अँखियों में आज भी उसकी न था कुछ भी नया...

पलकें जो एक बार झुकाई तो कभी न उठाई होंगी उसने,
जैसे सदियों से किसी से नज़रें न मिलाई होंगी उसने...

ऐसा नहीं के उसकी रगों में न बह रहा खून था,
पर हर बार की तरह वो जाने क्यों रहा मौन था..?

लबों से कभी उसने कुछ भी न कहा,
पर धडकनों को शायद मेरी उसने था सुन ही लिया...

क्योंकि आज धडकनों में उसकी एक हलचल सी थी,
आज दिल में भी मेरे एक खलबल सी थी...

समझ न पाया मैं अब तक उसको, इन चाँद मुलाकातों में,
बातें जो उसने कही, उन निःशब्द बातों में...

क्योंकि वो आज भी मेरे लिए सिर्फ और सिर्फ "कौन" था...
अंतः मन की सुरीली आवाजों वाला, जाने वो क्यों मौन था...?

एक सवाल की तरह वो मेरे जेहन में उतर गया...
हर मुलाकात के बाद उसकी आवाज सुनने का मेरा हर सपना बिखर गया...

सुना है उसकी चहक से, महक उठता था कभी ये सारा आलम,
पर उसके लबों की थरथराहट से भी महरूम हैं आज हम...

अब तो उसकी शाने - ग़ज़ल पे कुछ भी लिखना, मुझे कम लगता है,
उसकी हर एक अदा जिंदगी देती है मुझको, पर उसका चुप रहना मुझे गम लगता है...

अब तो यही ख्वाहिश है के वो मौन न रहे,
आ के दे दे वो मेरे सारे सवालों के जवाब,
ताकि वो मेरे लिए कभी "क्या" और "कौन" न रहे...

फिर भी एक आखिरी सवाल है उठ रहा दिल में मेरे, के आखिर वो कौन था,
जो शायद सिर्फ मेरे लिए ही रहा हर वक़्त मौन था ?

... Mahesh Barmate
11th March 2010
9:15 am

सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

ख़ुशी

ख़ुशी

उन राहों पे तेरे निशाँ ढूंढ रहा था,
हर घड़ी हवाओं से तेरा पता पूछ रहा था।

कुछ ने कहा तू है, यहीं - कहीं,
कुछ ने कहा, के तुझसा कोई है ही नहीं।

तेरे अनजाने अक्श को हर कागज़ पे खींच रहा था,
और तेरे प्यार का सावन इस दिल-ए-रेगिस्तान को हर पल सींच रहा था।

वो अक्श होगा कैसा, जिसे उसने बनाया होगा कहीं?
बस यही सवाल खुदा से हर वक़्त मैं पूछ रहा था।

तुझको पता नहीं, मैंने तेरे इंतजार में कितनी सदियाँ गवाँ दी...
और तुने आकर इक पल में ही मेरे इस जहां को संवार दी।

बहुत शुक्रिया तेरा, जो तू मिल गई आज मुझको ...
वरना मैं तो हर सफ़र में बस तुझको ही तलाश रहा था।

पर इस तलाश में एक प्यास अब भी रह गई बाकि है,
आजा लग जा गले ऐ सनम! क्योंकि इस दिल में अब बस चंद सांस ही बाकि है।

खुदा का भी जाने ये कैसा उसूल है, के हम मिले हम तब जब दिल आखिरी सांस ले रहा था,
फिर भी खुश हूँ के मर रहा हूँ मिलकर उससे, जिसकी खातिर अब तक मैं जी रहा था।

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Mahesh Barmate
10th Sept. 2009

गुरुवार, 14 जनवरी 2010

मंज़िल

मंज़िल

हर सफ़र की मंजिल मशहूर नज़र आती है,
पर मेरी किस्मत ही कुछ ऐसी है कि हर बार दिल्ली दूर नज़र आती है.

जो आँखे देती थीं कभी हौसला हमको,
आज जाने क्यों वो मजबूर नज़र आती हैं ?

पूरी होती नहीं कोई आश मेरी,
जाने क्यों किस्मत को मेरी हर सोच "नामंजूर" नज़र आती है ?

आँखों के सामने से मंजिल अक्सर, दूर और भी दूर होती जाती है...
जाने क्यों किस्मत में मेरी हर बार दिल्ली दूर नज़र आती है ?

पर फिर भी एक आख़िरी आश के साथ, निकल पड़ता है "महेश" हर बार,
क्योंकि हर मंज़िल मुझे "खुदा का नूर" नज़र आती है.

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Mahesh Barmate
Jan. 11, 2010

रविवार, 3 जनवरी 2010

दलदल

दलदल

हर देश हर शहर में एक ऐसा दलदल होता है,
जहां लोगों की रातें रंगीन करने वाला हर शख्श कमल होता है.

ये वो दलदल है, जहाँ न कोई न कोई गुलाब होता है.
पर एक बार के लिए ही सही हर आदमी के मन में ऐसे ही किसी कमल का ख्वाब होता है.

सारा जहान इसे एक गन्दा दलदल कहता है,
फिर भी इस दलदल के इन फूलों को अपनी आँखों का काज़ल कौन कहता है?

इस गंदे दलदल से इन सुन्दर कमलों को,
तो हर कोई बहार निकलना चाहता है...
पर कौन है ऐसा, जो इन कमलों को,
साफ़ सुथरी जगह देना चाहता है?

गर ये बाहर आ भी जाएँ, इस घिनौने दलदल से,
तब भी यहाँ हर कोई उन्हें, सिर्फ सजावटी फूल ही मानता है.
ये वो फूल नहीं जिन्हें, भगवान के चरणों में अर्पण किया जाए,
बल्कि इस FAST ज़माने में तो हर कोई इन्हें, बस USE - N - THROW मानता है.

ऐ दुनिया वालों! अपने दिल में झाँक कर देखो जरा...,
फिर मुझसे कहना के तुम्हारे दिल में है कितना गन्दा दलदल भरा?

जो कहा मैंने, वो बात सच है,
ये तुम्हारा और मेरा दिल जानता है.
आज "महेश" तुमसे सिर्फ इतनी ही भीख मांगता है.

के देनी हो इन कमलों को अगर कोई सुन्दर जगह,
तो निकाल फेंको उस नफरत के बीज को अपने दिलों से,
जो उनके लिए तुमने अपने दिलों में बोया है, बेवजह.


By
Mahesh Barmate

6th Sep. 2009