गुरुवार, 25 अक्टूबर 2012

मेरा मन...


कुंठाओ से घिरा हुआ ये मन
आज पुकार रहा है तुम्हें
के तुम कहाँ हो
कहाँ हो तुम के ये दिल अब
बिन तुम्हारे न तो जी रहा है और न मर रहा है
बस तुम से मिलने की आखिरी आस में
आज तो ये अपनी आखिरी साँस  में
तुम्हारा ही नाम बार बार
कभी दिल के इस पार तो कभी उस पार
बस यूं ही
शायद बेवजह
या शायद एक वजह से ही
तुम्हारा नाम
अपने नाम के साथ
हर जगह
लिख रहा है...

- इंजी॰ महेश बारमाटे "माही"
25/10/2012

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