शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

इल्तिजा


न दे जवाब ऐ दिल मेरे,
शायद तूने भी धड़कना बंद कर दिया...

मर गया इन्सां आज इसीलिए तो अब...
शरीर ने भी अब फड़कना बंद कर दिया... 

कैसा था वो रहमो - करम उस खुदा का,
के उसके बन्दों ने भी अब सदके पे उसकी झुकना बंद कर दिया...
खो गई हैं राहे - इबादत,
के लोगों ने अब बहकना बंद कर दिया...

फ़ैलने लगा है राज शैतान का इस कदर,
के खुदा ने भी शायद इस तरफ देखना बंद कर दिया...

फिर भी कायम है किसी दिल में खुदा की सल्तनत,
के शैतान ने भी खुदा से अब लड़ना बंद कर दिया...

सो गया है ज़मीर आज इंसान का,
के उसने भी अब अच्छे काम करना बंद कर दिया...

करीब है अब वक्त - ए - क़यामत,
के घड़ी ने भी अब चलना बंद कर दिया...

खुश हूँ मैं के मिलूँगा अब अपने खुदा से,
के मैंने भी क़यामत की चाह में अब दिन गिनना बंद कर दिया...

अंजाम जो भी मिले खुदा के दर पे,
के मैंने तो जन्नत और दोजख़ को भी अपनी मंज़िल में गिनना बंद कर दिया...

तू भी अब माँग ले माफ़ी, खुदा से ऐ मेरे "माही" !
के पछताएगा गर उसने भी माफ़ करना बंद कर दिया...

महेश बारमाटे "माही"
20th Aug. 2010

शनिवार, 18 दिसंबर 2010

वो चाँद सा मुखड़ा...



वो प्यारा सा मुखड़ा, 
जैसे चाँद का टुकड़ा...

आँखों में नींदें भरा,
अपने "Bag" को सिरहाना बना...

सो रही है वो, यूँ नींद की आगोश में, 
जैसे डूबी हो वो, किसी गहरी सोच में...

शायद कोई सपना, उसकी आँखों में पल रहा होगा,
या आने वाला कल, उसके दिलो - दिमाग में चल रहा होगा...

जाने किस सोच में डूबी होंगी आँखे उसकी,
या किसी अपने को सुनने के लिए तड़पती होंगी बातें उसकी...?

नींद में भी आँखे उसकी हैं शायद कुछ कह रहीं,
के आज वो मेरे मन मष्तिस्क को, इक स्वप्न परी सी है लग रही...

उसकी इस अदा ने मुझपे, जाने कैसा जादू ढाया है,
के देख के उसका चंचल मुखड़ा, आज मुझे कोई अपना याद आया है...

रुखसारों को चूमती उसकी जुल्फें,
चुरा रही हैं दिल मेरा चुपके - चुपके...

हाय ! कैसे सम्भालूँ अब अपने इस पागल दिल को,
के लगता है जैसे पा लिया हो, आज इस राही ने भी अपनी मंज़िल को...

नींद में उसका यूँ मुस्कुराना,
जैसे सुहाग की सेज पर, दुल्हन का शर्माना...

ज़ालिम हर अदा ने उसकी, ऐसा ज़ुल्म मुझपे ढाया है,
के आज एक मेनका ने फिर, किसी विश्वामित्र का दिल पिघलाया है...

ये दुआ कर रहे थे हम,
के दिल की बातों को अब ले वो सुन...

और देखो दुआ मेरी अब पूरी होती नज़र आई है,
पलकों ने उसकी देखो ली अभी - अभी अंगड़ाई है...

आह ! मेरी सोच से भी परे,
नयन हैं उसके नीले नीले...

नीले नयनो की कमान से, उसने ऐसा बाण चलाया है,
 के एक ही वार में उसने, ये तीर - ए - नज़र सीधा दिल के आर - पार पहुँचाया है...

वो कर के घायल हमको, फिर खो गयी नींद की आगोश में,
और दिल देकर भी, अब हम न रहे होश में...

नींद में उसका यूँ मुस्काना,
लगता है जैसे अपनी जीत पर उसका इतराना...
खुदा कसम, मार डालेगा अब मुझे, 
उसका यूँ चहरे से अपनी जुल्फें हटाना...

वो तो सो गई, बस एक प्यारी सी मुस्कान देकर,
अब जाने कैसे कटेगा ये सफ़र मेरा, दिलो - जाँ खोकर...

अब तो खुदा से बस यही दुआ करता है दिल मेरा, "माही"...
के लूटा है जिसने चैनो - करार इस दिल का,
बस वही बने अब मेरी जिंदगी के सफ़र का हमराही...

महेश बारमाटे "माही"
12th Dec. 2010

गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

वादा


तन्हा ही आए थे, तन्हा ही जायेंगे,
इक मुलाकात का किया था जो वादा हमने,
मरने से पहले वो हर वादा निभा जायेंगे...

तुम इंतज़ार न करना हमारा,
हम मिलने जरूर आयेंगे...
देखे थे ख्वाब हमारी मुलाकात के जो तुमने,
हर वो ख्वाब हम पूरा करते जायेंगे...

रुक जायेगा वक्त, जब हम तुमसे मिलने आएँगे,
अपनी जुदाई के सारे मंज़र,
मेरे वादे के सामने थमते जायेंगे...

तब न रोक पाएगा कोई रकीब भी हमको,
जब हम तेरा दीदार करने आएँगे...

बस मेरी बात पर ऐतबार रखना "माही",
के तुझको रुसवा न किया है कभी हमने,
और न कभी हम ऐसा कर पाएंगे...

By
महेश बारमाटे - "माही"
18th Nov. 2010

शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

ऐतबार


अपनी ही परछाइयों से डरने लगा हूँ मैं...
के जब से तुझसे प्यार करने लगा हूँ मैं...

अन्जान है तू आज भी मेरे हाले - दिल से...
इस बात का कोई गम नहीं मुझे,
बस अब तो तेरे एहसास से भी डरने लगा हूँ मैं...

घूम रहा था मैं इक दफा,
आवारा परवाने की तरह...
के जब से देखा है तेरी शमा - ए - मुहब्बत,
बस इक ठंडी आग में जलने लगा हूँ मैं...

तुझे पा के भी, ऐ सनम !
तेरी दगा - ए - मुहब्बत  से कभी तेरे हो न सके हम...
पर फिर भी आज तेरा ही इंतज़ार करने लगा हूँ मैं...

मेरा मुकाम कहाँ तय था,
एक तेरा दिल ही तो बस मेरा आश्रय था...
टूट चूका हूँ आज इतना मैं, ओ मेरे माही !
के तेरी बेवफाई से भी वफ़ा करने लगा हूँ मैं...

ठुकरा दिया जिसने मुझे और मेरी मुहब्बत को,
आज उससे और भी प्यार करने लगा हूँ मैं...
के कभी तो तरस आएगा खुदा को भी मुझ पे "माही",
किस्मत पे अपनी, इतना तो ऐतबार करने लगा हूँ मैं...

महेश बारमाटे "माही"
6th Nov. 2010